मानव अधिकार मूल रूप से वे अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को इंसान होने के कारण मिलते हैं। ये नगरपालिका से लेकर अंतरराष्ट्रीय कानून तक कानूनी अधिकार के रूप में संरक्षित हैं। मानवाधिकार सार्वभौमिक हैं इसलिए ये हर जगह और हर समय लागू होते हैं। मानवाधिकार मानदंडों का एक समूह है जो मानव व्यवहार के कुछ मानकों को चित्रित करता है। नगर निगम के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय कानून में कानूनी अधिकारों के रूप में संरक्षित, इन अधिकारों को अनौपचारिक मौलिक अधिकारों के रूप में जाना जाता है जिसका एक व्यक्ति सिर्फ इसलिए हकदार है क्योंकि वह एक इंसान है।
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राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं, लेकिन उन्हें उनके पद से केवल राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है । राष्ट्रपति इन्हें उसी आधार एवं उसी तरह पद से हटा सकते हैं, जिस प्रकार वे राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को हटाते हैं । वे अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को निम्न परिस्थितियों में पद से हटा सकते हैं :
श्री न्याय मूर्ति बाबू लाल चंदूलाल पटेल
इस अधिकार के अनुसार गुलामी और गुलामी के व्यापारियों को हर रूप में प्रतिबंधित किया गया है। हालांकि दुर्भाग्य से ये दुर्व्यवहार अब भी अवैध तरीके से चलते हैं।
पश्चिम बंगाल का नंदीग्राम मामला हो अथवा उड़ीसा के गांवों में भूख से त्रस्त किसानों द्वारा आत्महत्या के मामले, हमें यह सोचने के लिए विवश होना पड़ा है कि नई सामाजिक व्यवस्था निर्मित किए बिना भारत की बहुसंख्यक जनता के लिए मौलिक अधिकारों का कोई अर्थ ही नहीं है।
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मानव अधिकारों का मूल उद्देश्य मानव की गरिमा को सुरक्षा प्रदान करना है। अधिकारों की विचारधारा पर मूल सहमति है कि हर देश एवं क्षेत्र के निवासी को एक गरिमामय जीवन जीने को मिले तथा उसके मूल जीवन जीने के अधिकारों को सुरक्षा प्राप्त हो।
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मानव अधिकार मानव के विशेष अस्तित्व के कारण उनसे संबंधित है इसलिए ये जन्म से ही प्राप्त हैं और इसकी प्राप्ति में जाति, लिंग, धर्म, भाषा, रंग तथा राष्ट्रीयता बाधक नहीं होती। मानव अधिकार को मूलाधिकार आधारभूत अधिकार अंतरनिहित अधिकार तथा नैसर्गिक अधिकार भी कहा जाता है।
कश्मीर में सत्ता सबको चाहिए, लोकतंत्र किसी को click here नहीं